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कितना गंभीर होगा रूस के तेल पर बैन का असर?

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अमेरिका ने रूस से तेल आयात पर बैन लगा दिया है. राष्ट्रपति जो बाइडेन ने मंगलवार को इसकी घोषणा की. सुरक्षा विशेषज्ञ इस कदम को बहुत बड़ी कार्रवाई मानते हुए कह रहे हैं कि यही एक ऐसा कदम है जो रूस को कदम पीछे हटाने पर मजबूर कर सकता है. हालांकि माना जा रहा है कि इस कार्रवाई का असली असर तभी होगा जबकि यूरोपीय देश भी इसे लागू करें. लेकिन फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि कितने यूरोपीय देश यह कदम उठा पाएंगे. हालांकि ब्रिटेन ने मंगलवार को कहा है कि वह साल के आखिर तक रूस से तेल का आयात चरणबद्ध तरीके से बंद कर देगा.

अमेरिका के मुकाबले रूस पर यूरोप की ऊर्जा निर्भरता कहीं ज्यादा है. सऊदी अरब के बाद रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक है. लेकिन अमेरिका उससे थोड़ी मात्रा में ही तेल आयात करता है जिसका विकल्प खोजना आसान है. लेकिन यूरोप के लिए निकट भविष्य में तो ऐसा करना आसान नहीं दिखता.

एक और खतरा तेल कीमतों में बेतहाशा वृद्धि भी है. यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ही दुनियाभर में तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं. अगर रूस से आयात बंद कर दिया जाता है तो उपभोक्ताओं, उद्योगों और वित्तीय बाजारों के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं, जिसका असर अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा.

अमेरिकी प्रतिबंध का असर
अमेरिका में गैसोलिन के दाम ऐतिहासिक ऊंचाई पर हैं. बाइडेन प्रशासन ने यूक्रेन की मांग मानते हुए रूस से तेल आयात पर प्रतिबंध का ऐलान कर दिया है. हालांकि रूस पर इसका बहुत ज्यादा असर होने की संभावना नहीं है क्योंकि अमेरिका बहुत कम तेल रूस से खरीदता है और प्राकृतिक गैस तो बिल्कुल नहीं लेता है.

पिछले साल अमेरिका के कुल पेट्रोलियम आयात का सिर्फ 8 प्रतिशत रूस से आया था. 2021 में इसकी मात्रा 24.50 करोड़ बैरल थी, यानी लगभग 6,72,000 बैरल प्रतिदिन. लेकिन रूस से आयात रोजाना घट रहा है क्योंकि खरीदार भी रूसी तेल को ना कह रहे हैं.

लेकिन रूस पर फिलहाल इसका ज्यादा असर नहीं होगा क्योंकि इतनी ही मात्रा में वह अपना तेल कहीं और बेच सकता है. चीन और भारत उसके संभावित ग्राहक हैं. पर उसे यह तेल कम कीमत पर बेचना होगा क्योंकि उसके तेल के ग्राहक लगातार घट रहे हैं.
वेनेजुएला, ईरान को होगा फायदा

रिस्टाड एनर्जी में विश्लेषक क्लाउडियो गैलिम्बेर्टी कहते हैं कि आने वाले समय में अगर रूस को बिल्कुल अलग-थलग कर दिया जाता है तो ईरान और वेनेजुएला जैसे तेल विक्रेता देशों की वापसी अंतरराष्ट्रीय बाजार में हो सकती है, जिनकी अपनी छवि अच्छी नहीं है. इनकी वापसी से तेल की कीमतों को दोबारा स्थिर किया जा सकता है.

पिछले हफ्ते ही अमेरिका का एक दल वेनेजुएला में था और प्रतिबंध हटाने पर बातचीत हुई है. अमेरिकी प्रेस सचिव जेन साकी ने बताया कि इस दल ने ऊर्जा सहित कई मुद्दों पर विचार-विर्मश किया है.

क्लीयव्यू एनर्जी पार्टनर्स के प्रबंध निदेशक केविन बुक कहते हैं, “कुछ मांग घटाकर हम रूसी तेल के दामों में कमी को बाध्य कर रहे हैं. इससे रूस का रेवन्यू कम होगा. सिद्धांत में तो यह रूस की आय को कुछ हद तक कम कर सकता है. लेकिन सबसे जरूरी सवाल यह है कि महाद्वीप के दूसरी तरफ से भी कुछ प्रतिक्रिया होती है या नहीं.”

ऊर्जा कंपनी शेल ने मंगलवार को कहा है कि वह रूस से तेल और प्राकृतिक गैस नहीं खरीदेगी और वहां अपने पेट्रोल पंप भी बंद कर देगी. लेकिन इसका असर कीमतों पर बहुत अधिक हो सकता है. पिछले महीने तेल 90 डॉलर प्रति बैरल था जो अब 130 डॉलर तक जा पहुंचा है. विशेषज्ञों को आशंका है कि यह 200 डॉलर प्रति बैरल तक भी जा सकता है.

कॉलराडो स्कूल ऑफ माइंल में पाएन इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर मॉर्गन ब्राजीलियन कहते हैं, “अमेरिका द्वारा रूस के तेल पर प्रतिबंध राजनीतिक रूप से तो आकर्षक कदम लगता है लेकिन जब अमेरिका में तेल के दाम बढ़ेंगे तो यह बाइडेन सरकार पर ही चोट करेगा.”

क्या यूरोप साथ देगा?
यूरोप को यह कदम उठाने के लिए बहुत दर्द सहन करना होगा. यूरोप में गैस हीटिंग, बिजली और अन्य ओद्यौगिक इस्तेमाल के लिए 40 प्रतिशत प्राकृतिक गैस रूस से आती है. यूरोप के नेता रूस पर अपनी निर्भरता घटाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उसमें समय लगेगा.

ब्रिटेन के व्यापार मंत्री क्वासी क्वार्टेंग कहते हैं कि उनका देश चरणबद्ध तरीके से साल के आखिर तक रूस के तेल को खरीदना बंद करेगा ताकि “बाजार को इनका विकल्प खोजने के लिए समुचित समय मिल पाए.”

जर्मनी, जो कि रूस का सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस उपभोक्ता है, फिलहाल तो प्रतिबंध लगाने के लिए तैयार नहीं है. देश के अर्थव्यवस्था मंत्री रॉबर्टन हाबेक ने मंगलवार को यूरोप के रूस पर ऊर्जा प्रतिबंध ना लगाने के फैसले का बचाव किया.

हाबेक ने कहा, “प्रतिबंधों को सोच-समझकर चुना गया है ताकि वे रूसी अर्थव्यवस्था और पुतिन सरकार को गंभीर नुकसान पहुंचाएं. लेकिन उनका चुनाव करते वक्त यह भी ध्यान में रखा गया है कि एक अर्थव्यवस्था और एक देश के रूप में हम इन प्रतिबंधों को लंबे समय तक कायम रख सकें. बिना सोचे-समझे फैसला लेने का असर एकदम उलटा हो सकता है.”

वीके/एए (रॉयटर्स, डीपीए)

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